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ai zi.ndagii ke raahii himmat na haar jaanaa

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ऐ ज़िंदगी के राही हिम्मत न हार जाना
बीतेगी रात ग़म की बदलेगा ये ज़माना

क्यों रात की सियाही तुझ को डरा रही है
हारे हुए मुसाफ़िर मंज़िल बुला रही है
बस जायेगा किसी दिन उजड़ा जो आशियाना
बीतेगी रात ग़म की ...

हाथों से तेरे दामान उम्मीद का न छूटे
दम टूट जाये लेकिन हिम्मत कभी न टूटे
मरने में क्या धरा है जीने का कर बहाना
बीतेगी रात ग़म की ...

Comments/Credits:

			 % Transliterator: K Vijay Kumar
		     
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