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apanii tasviir ko aa.Nkho.n se lagaataa kyaa hai

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अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है
इक नज़र मेरी तरफ़ भी तेरा जाता क्या है

मेरी रुस्वाई में वो भी हैं बराबर के शरीक़
मेरे क़िस्से मेरे यारों को सुनाता क्या है

पास रह कर भी न पहचान सका तू मुझको
दूर से देख के अब हाथ हिलाता क्या है

उम्र भर अपने गिरेबाँ से उलझने वाले
तू मुझे मेरे ही साये से डराता क्या है

मैं तेरा कुछ भी नहीं हूँ मगर इतना तो बता
देख कर मुझको तेरे ज़हन में आता क्या है

सफ़र-ए-शौक़ में क्यूँ काँपते हैं पाँव तेरे
दूर से देख के अब हाथ हिलाता क्या है

मर गये प्यास के मारे तो उठा अब्र-ए-करम
बुझ गई बज़्म तो अब शम्मा जलाता क्या है

Comments/Credits:

			 % This is also in "The Best of Ghulam Ali".
		     
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