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jis ghar ke logo.n ko ... are ham pa.nchhii ek Daal ke

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जिस घर के लोगों को सुबह झगड़ते देखा है
शाम हुई कि घर वही उजड़ते देखा है
अरे बनती नहीं है बात झगड़े से कभी यारों
अरे बनती बात को बिगड़ते देखा है

अरे हम पंछी ( एक डाल के ) -२
संग-संग डोलें जी संग-संग डोलें
बोली अपनी-अपनी बोलें जी बोलें जी बोलें जी बोलें
को : संग-संग डोलें ...

दिन के झगड़े दिन को भूलें रात को सपनों में हम झूलें
धरती बिछौना नीली चदरिया मीठी नींदें सो लें जी सो लें जी सो लें
को : संग-संग डोलें ...

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