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mai.n huu.N mast madaarii

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मैं हूँ मस्त मदारी -२
बिना तीर दिल घायल कर दूँ ऐसा मैं हूँ शिकारी
हो मैं हूँ मस्त ...

खेल-खेल में मेल हो दिल का ऐसा खेल दिखाऊँ
नज़रों की मैं डोर फेंक कर तेरा दिल उलझाऊँ
पागल को पागल पहचाने जाने नहीं अनाड़ी
हो मैं हूँ मस्त ...

छिपने वाले छिपकर आते छिपकर करें इशारा
लेकिन दर्द छिपाए कैसे तीर-ए-नज़र का मारा
एक अदा पे हम करते क़र्बान ये दुनिया सारी
हो मैं हूँ मस्त ...

Comments/Credits:

			 % Credits: Ashok Dhareshwar
		     
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