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mai.nne laakho.n ke bol sahe sitamagar tere liye - - Afzal Hussain Naginavaale

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मैं ने लखों के बोल सहे सितम्गर तेरे लिये

हुआ जो गोर-ए-ग़रीबां में एक रोज़ गुज़र
तो उस जगह मुझे इक ताज़ा क़ब्र आई नज़र
जो पढ़ के फ़ातहा चलने लगा तो मैं ने सुना
बा-ज़ेर-ए-क़ब्र कोई कह रहा है रो-रो कर
मैं ने लखों के बोल सहे
सितम्गर तेरे लिये

ठहर ग्या मैं वहीं रुक ग्या क़दम मेरा
इलाही कौन है इस क़ब्र में ये मैं ने कहा
अभी मैं बह्र-ए-तफ़ुक्कर में ग़र्क़ था 'नाज़िश'
कि इतने में फिर उसी क़ब्र से ये आई सदा
मैं ने लखों के बोल सहे
सितम्गर तेरे लिये

सुना दोबारा जो उस से यही बयान-ए-अलम
तो पूछा मैं ने कि ऐ दर्द्मंद कुश्ता-ए-ग़म
तू किस के हिज्र में मुज़्तिर है सब बता लिल्लाह
तू किस की याद में रो-रो के कहता है हरदम
मैं ने लखों के बोल सहे
सितम्गर तेरे लिये

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