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na to din hii din vo rahe mere

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न तो दिन ही दिन वो रहे मेरे
न वो रात रात मेरी रही
किसे शौक़ ज़िंदगी का है अब
मेरी साज़ बेसुर ही सही
न तो दिन ही दिन वो रहे मेरे ...

न तो चाँद पे वो निखार है
न वो चाँदनी में बहार है
न वो जोश पासी-ए-इश्क़ में
न वो जिस्म ही में तड़प रही
न तो दिन ही दिन वो रहे मेरे ...

न है इंतज़ार मुझे कोई
झूठे ज़िंदगी के फ़रेब से
न किसी की याद से वास्ता
न किसी के दिल में है कल रही
किसे शौक़ ज़िंदगी का है अब ...

Comments/Credits:

			 % Transliterator: K Vijay Kumar
		     
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