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nii baliye rut hai bahaar kii ... kuchh mat puuchho kaise biitii.n

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को : नी बलिये रुत है बहार की
सुन चनवे रुत है बहार की
ल : कुछ मत पूछो कैसे बीतीं घड़ियाँ इंतज़ार की
मु : नी बलिये रुत है बहार की
ल : सुन चनवे रुत है बहार की

आख़िर सुन ली मनमोहन ने मेरे मन की बोली ओ
मु : अब जाकर हमको पहचानीं उनकी नज़रें भोली -२
ल : सखी घड़ी आ गई मेरे सिंगार की
को : सोहल सिंगार की
मु : नी बलिये रुत है बहार की
ल : सुन चनवे रुत है बहार की
कुछ मत पूछो ...

दिल ने कहा तेरा सपना झूठा मैने कहा सच होगा
मु : हम पहले दिन जान जान गए थे कैसे क्या कब होगा
ल : सुन लो ये सरगम दिल के सितार की
को : दिल के सितार की
मु : नी बलिये रुत है बहार की
ल : सुन चनवे रुत है बहार की
कुछ मत पूछो ...

मु : रात-रात भर सोचा तुमको कैसे पास बुलाऊँ
ल : द्वार खड़े तुम लाज लगे अब सामने कैसे आऊँ
मु : कभी इकरार की कभी इन्कार की
को : कभी इन्कार की
मु : नी बलिये रुत है बहार की
ल : सुन चनवे रुत है बहार की
कुछ मत पूछो ...

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