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o raat ke musaafir chandaa zaraa bataa de

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ओ रात के मुसाफ़िर चन्दा ज़रा बता दे
मेरा क़ुसूर क्या है, तू फ़ैसला सुना दे

है भूल कोई दिल की आँखों की या ख़ता है
कुछ भी नहीं तो फिर क्यों मुझसे कोई खफ़ा है
मंज़ूर है वो मुझको जो कुछ भी तू सज़ा दे
मेरा क़ुसूर क्या है ...

दिल पे किसी को अपने क़ाबू नहीं रहा है
ये राज़ मेरे दिल से आँखों ने ही कहा है
आँखों ने जो है देखा दिल किस तरह भुला दे
मेरा क़ुसूर क्या है ...

ओ चाँद आसमां के, दम भर ज़मीं पे आजा
भूला हुआ है राही, तू रास्ता दिखा जा
भटकी हुई है नैया साहिल इसे दिखा दे
मेरा क़ुसूर क्या है ...

Comments/Credits:

			 % Transliterator: K Vijay Kumar
		     
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