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taaj naGmaa hai ... mumataaj tujhe dekhaa

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प्री : दिलरुबा -२
ह : ताज नग़्मा है मोहब्बत के धड़कते साज़ का
ये है वो आईना जिसमें अक्स है मुमताज का

प्री : दिलरुबा
ह : ( मुमताज तुझे देखा जब ताजमहल देखा
फिर आज की आँखों से गुज़रा हुआ कल देखा ) -२

प्री : दिलरुबा -२
ह : मिलते ही निगाहों में सौ रंग लगे खिलने
तू मेरी मोहब्बत है मुझसे ये कहा दिल ने
ऐ जान तुझे मैंने जब पहले-पहल देखा
मुमताज तुझे देखा जब ताजमहल देखा
फिर आज की आँखों से गुज़रा हुआ कल देखा

ह : आऽ
जब ले के तू अंगड़ाई कुछ और क़रीब आई
दामन में मोहब्बत के सिमटी मेरी तनहाई
एक नूर की बारिश में भीगा हुआ पल देखा
मुमताज तुझे देखा जब ताजमहल देखा
फिर आज की आँखों से गुज़रा हुआ कल देखा

ह : आऽ
ये हँसती हुई रातें लहराते हुये गेसू
प्री : आऽ
नग़्मा तेरी ख़ामोशी आवाज़ तेरी जादू
मैंने तेरी बातों में अंदाज़-ए-ग़ज़ल देखा
मुमताज तुझे देखा जब ताजमहल देखा
फिर आज की आँखों से गुज़रा हुआ कल देखा

प्री : दिलरुबा
ह : मैंने तेरी आँखों का एक ख़ाब सजाया है
तस्वीर-ए-वफ़ा बनकर जो सामने आया है
तूने ही नहीं इसको मुमताजमहल देखा
मुमताज तुझे देखा जब ताजमहल देखा
फिर आज की आँखों से गुज़रा हुआ कल देखा

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